क़िस्त 96
381
अन्तर्मन से अन्तर्मन का
जब अटूट हो जाए बंधन
गौण उधर तब हो जाता है
रूप-राशि तन का आकर्षन
382
मैं न रहूँ जब साथ तुम्हारे
रुकना नहीं सफ़र में अपने
धीरज रख कर पूरी करना
हम दोनों के जो थे सपने
383
जीवन क्या ? संघर्ष कथा है
दीप-शिखा की, तूफ़ानों से
दुनिया तुम को पहचानेगी
ज्योति-पुंज के अभियानों से
384
धीरे-धीरे आखिर हम-तुम
इतनी दूर चले ही आए
अब तुम कहती लौट मैं जाऊँ
नामुमकिन है क्या बतलाएँ
-आनन्द.पाठक-
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