क़िस्त 95
377
खुशबू भला कहँ बँध सकती
कलियों फूलों के बंधन में
पंख हवाओं के मिल जाते
छा जाती गुलशन गुलशन में
378
चाहत नहीं मरा करती है
एक तेरे ठुकराने भर से
साँस साँस में घुली हुई है
अगर देख लो खुली नज़र से
379
एक प्रश्न पूछा था तुमने
दे सका न मैं जिसका उत्तर
कितना ढूँढा पोथी-पतरा
उत्तर था बस " ढाई-आखर’
380
सार यही जीवन का समझो
निश्चल पावन प्रेम समर्पन
पोथी-पतरा क्या जानूँ मै
जानूँ एक यही बस ’दर्शन’
-आनन्द.पाठक-
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