मंगलवार, 31 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 95

 क़िस्त 95

 

377

खुशबू भला कहँ बँध सकती

कलियों फूलों के बंधन में 

पंख हवाओं के मिल जाते

छा जाती गुलशन गुलशन में


378

चाहत नहीं मरा करती है

एक तेरे ठुकराने भर से

साँस साँस में घुली हुई है

अगर देख लो खुली नज़र से


379

एक प्रश्न पूछा था तुमने

दे सका न मैं जिसका उत्तर

कितना ढूँढा पोथी-पतरा

उत्तर था बस " ढाई-आखर’ 


380

सार यही जीवन का समझो

निश्चल पावन प्रेम समर्पन

पोथी-पतरा क्या जानूँ मै

जानूँ एक यही बस ’दर्शन’

-आनन्द.पाठक-

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