मंगलवार, 31 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 94

 


क़िस्त 94


373

जबतक है चेतना तुम्हारी

तबतक इसको थाती समझो

साँस है जबतक तुम भी तबतक

वरना फिर तो माटी समझो


374

जबतक सूरज चमक रहा है

जो करना है कर जाना  है

शाम ढलेगी तो फिर सबको

अपने अपने घर जाना है


375

"अनुभूति" न बस ’आनन’ की है

मेरी-तेरी हम सबकी है

फ़र्क यही कि मैने कह दी

और सभी ने बस सह ली है


376

रात गई सो बात गई अब

उसको फिर से क्या दुहराना

नई सुबह की नई किरन को

जो बीती है नहीं बताना 

-आनन्द.पाठक-


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