क़िस्त 93
369
प्यास अधूरी रह जाती है
दुनिया भर के बंधन-साँकल
कभी इधर है धरती प्यासी
कभी उधर है प्यासा बादल
370
बैठे ठाले लिख देते हो
मेरे सर इलजाम लगा कर
रत्ती भर था दोष न मेरा
किसे कहूँ मै रो कर-गा कर
371
जीवन की आपा-धापी में
इतना वक़्त नहीं मिल पाया
ख़ुद से ख़ुद भी निल न सका मैं
हासिल भी लाहासिल पाया
372
केन्द्र-परिधि का रिश्ता है जो
ठीक वही रिश्ता गोरी का
दूर दिखे पर दूर नहीं वो
एक छोर है उस डोरी का
-आनन्द.पाठक-
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