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ग़ज़ल 191 : चाह अपनी छुपा न सके--
चाह अपनी कभी छुपा न सके
बात दिल की ज़ुबाँ पे ला न सके
बात दिल की ज़ुबाँ पे ला न सके
आँख उनकी कही न भर आए
ज़ख़्म दिल का उन्हे दिखा न सके
सामने यक ब यक जो आए वो
शर्म से हम नज़र मिला न सके
कैसे करता यक़ीन मैं तुम पर
एक वादा तो तुम निभा न सके
ज़िन्दगी के हसीन पहलू को
एक हम हैं कि आजमा न सके
लोग इलजाम धर गए मुझ पर
हम सफ़ाई में कुछ बता न सके
याद क्या हम को आ गया ’आनन’
हम नदामत से आँख उठा न सके
-आनन्द पाठक-
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