क़िस्त 69
273
साथ सफ़र में कितने आए
धीरे-धीरे दूर हो गए
हम सब हैं कठपुतली उसकी
नर्तन को मजबूर हो गए ।
274
सावन फिर आने वाला है
और अभी तक तुम हो रूठी
"हाँ" कह कर फिर भी ना आना
क्यॊं न कहूँ मैं तुम हो झूठी
275
"मेघदूत" का नहीं जमाना
जो कहना है ’मेसेज’ कर दो
और कोई इल्जाम हो बाक़ी
वह भी मेरे सर पर धर दो
276
जब तुमने यह मान लिया है
मैं ही ग़लत था,तुम ही सही थी
तिल का तुमने ताड़ बनाया
बात जो मैने कही नहीं थी
-आनन्द.पाठक-
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