क़िस्त 70
277
बात यहाँ की, या कि वहाँ की
बातों में तू शामिल होगा
साँस बाँध कर दौड़ रहा है
सोच ज़रा क्या हासिल होगा ?
278
नदिया अविरल बहती रहती
नहीं देखती पीछे मुड़ कर
एक कल्पना में जीती है
आनन्दित सागर से जुड़ कर
279
बात नई वैसे तो नहीं कुछ
पीड़ा है जानी पहचानी
पास जो बैठो,कह लें,सुन लें
अपनी अपनी राम कहानी
280
हाथ मिलाना, मिल कर रहना
कोई मुश्किल काम नहीं है
लेकिन अहं गुरुर आप का
बन जाती दीवार वहीं है
-आनन्द.पाठक-
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