क़िस्त 71
281
दर्द बाँटने से, सुनते हैं
मन कुछ हल्का हो जाता है
जख़्म भले जितना गहरा हो
भर कर अच्छा हो जाता है
282
ऐसी क्या है बात कि जिसको
दुनिया से तुम छुपा रही हो
आँखें सब कुछ कह देती हैं
याद किसी की भुला रही हो
283
तूफ़ाँ में थी कश्ती मेरी
क्या क्या गुज़री थी इस दिल पर
तुम ने भी तो देखा होगा
और हँस रहे थे साहिल पर
284
सबका अपना दिन होता है
सबकी काली रातें होती
प्यार वफ़ा सब क़स्में वादे
कहने की बस बातें होतीं
-आनन्द.पाठक-
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