क़िस्त 72
285
बादल बरसे या ना बरसे
कोई असर नहीं अब मुझ पर
प्रेम-प्रीति का स्नेह नहीं जब
दीप जलेगा फिर क्या बुझ कर
286
हमदम बन कर छला सभी ने
फिर भी नहीं शिकायत कोई
दुआ सभी को दिल से मेरा
जो होना है होगा वो ही
287
’कथनी’ कुछ थी ,’करनी’ कुछ थी
चेहरे पर चेहरे थे उन पर
वीर बहादुर बातों के थे
क्या करते हम उनको सुन कर
288
पथरीली राहों से चल कर
सागर से मिलने जब आई
प्यास मिलन की लेकर नदिया
नाप रही अपनी गहराई
-आनन्द.पाठक--
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