मंगलवार, 3 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 72

 क़िस्त 72


285

बादल बरसे या ना बरसे

कोई असर नहीं अब मुझ पर

प्रेम-प्रीति का स्नेह नहीं जब

दीप जलेगा फिर क्या बुझ कर


286

हमदम बन कर छला सभी ने

फिर भी नहीं शिकायत कोई

दुआ सभी को दिल से मेरा

जो होना है होगा वो ही


287

’कथनी’ कुछ थी ,’करनी’ कुछ थी

चेहरे पर चेहरे थे उन पर

वीर बहादुर बातों के थे

क्या करते हम उनको सुन कर


288

पथरीली राहों से चल कर

सागर से मिलने जब आई 

प्यास मिलन की लेकर नदिया

नाप रही अपनी गहराई

-आनन्द.पाठक--


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें