क़िस्त 73
289
परबत परबत सहरा सहरा
नदिया अविरल बहती जाती
दुनिया से बेपरवा हो कर
अपनी धुन में हँसति गाती
290
बीती बातॊं में क्या रख्खा
जिसको तुम दुहराती रहती
आगे की सुधि लेना बेहतर
माज़ी में क्यॊ जाती रहती ?
291
दुनिया की अपनी गाथा है
और तुम्हारी अलग कहानी
कौन सदा सुख में रहता है
बात नहीं क्यॊ तुम ने जानी
292
औरों को उपदेश सरल है
जब तक अपने पर ना आए
प्रवचन करना अलग बात है
उस पर जीना किसको भाए
-आनन्द.पाठक-
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