मंगलवार, 3 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 73

 क़िस्त 73


289

परबत परबत सहरा सहरा

नदिया अविरल बहती जाती

दुनिया से बेपरवा हो कर

अपनी धुन में हँसति गाती


290

बीती बातॊं में क्या रख्खा 

जिसको तुम दुहराती रहती

आगे की सुधि लेना बेहतर

माज़ी में क्यॊ जाती रहती ?


291

दुनिया की अपनी गाथा है

और तुम्हारी अलग कहानी

कौन सदा सुख में रहता है

बात नहीं क्यॊ तुम ने जानी


292

औरों को उपदेश सरल है

जब तक अपने पर ना आए

प्रवचन करना अलग बात है

उस पर जीना किसको भाए

-आनन्द.पाठक-

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