मंगलवार, 3 अगस्त 2021

अनुभूतियाँ 74

 क़िस्त 74 


293

मौन मुखर हो जाता मन का

भोली सूरत में फँस जाता

हमदम बन कर आता कोई

और अचानक है डँस जाता 


294


 सफ़र नहीं कोई नामुमकिन 

हिम्मत क़ायम जब तक दिल में

अगर कभी लगता हो तुमको

याद करो रब को मुश्किल में


295

बादल की है चाल फ़रेबी

उमड़ा यहाँ, कहीं जा बरसा

राह देखती प्यासी गोरी

और भीगने को मन तरसा


296

आँखें सब कुछ कह देती हैं

चाहत चाहे लाख छुपाओ

बिना दिखाए दिख जाता है

दर्द दिखाओ या न दिखाओ 

-आनन्द.पाठक-

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें