क़िस्त 74
293
मौन मुखर हो जाता मन का
भोली सूरत में फँस जाता
हमदम बन कर आता कोई
और अचानक है डँस जाता
294
सफ़र नहीं कोई नामुमकिन
हिम्मत क़ायम जब तक दिल में
अगर कभी लगता हो तुमको
याद करो रब को मुश्किल में
295
बादल की है चाल फ़रेबी
उमड़ा यहाँ, कहीं जा बरसा
राह देखती प्यासी गोरी
और भीगने को मन तरसा
296
आँखें सब कुछ कह देती हैं
चाहत चाहे लाख छुपाओ
बिना दिखाए दिख जाता है
दर्द दिखाओ या न दिखाओ
-आनन्द.पाठक-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें