ग़ज़ल 200
121-22/ 121-22 /121-22/ 121-22
बदल गईं जब तेरी निगाहें , ग़ज़ल का उन्वां बदल गया है
जहाँ भी हर्फ़-ए-करम लिखा था, वहीं पे हर्फ़-ए-सितम लिखा है
अजब मुहब्बत का यह चलन है जो डूबता है वो पार पाता
फ़ना हुए हैं ,फ़ना भी होंगे, ये सिलसिला भी कहाँ रुका है
पता तो उसका सभी को मालूम, तलाश में हैं सभी उसी के
कभी तो दैर-ओ-हरम में ढूँढू , कभी ये लगता कि लापता है
न कुछ भी सुनना, न कुछ सुनाना, न कोई शिकवा,गिला,शिकायत
ये बेख़ुदी है कि बेरुख़ी है, तुम्हीं बता दो सनम ये क्या है ?
पयाम मेरा, सलाम उनको, न जाने क्यों नागवार गुज़रा
जवाब उनका न कोई आया, मेरी मुहब्बत की यह सज़ा है
तमाम कोशिश रही किसी की, कि बेच दूँ मैं ज़मीर अपना
मगर ख़ुदा की रही इनायत, ज़मीर अबतक बचा रखा है
जिसे तुम अपना समझ रहे थे, हुआ तुम्हारा कहाँ वो ’आनन’
उसे नया हमसफ़र मिला है. तुम्हें वो दिल में कहाँ रखा है
-आनन्द.पाठक-
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