मंगलवार, 8 मार्च 2022

ग़ज़ल 201

 ग़ज़ल 201


122---122--122---122


मुहब्बत की उसने सज़ा जो सुनाई

न क़ैद-ए-कफ़स ही, न होगी रिहाई


भरोसा नहीं जब मेरी बात का तो

कहाँ तक तुम्हें दूँ मैं अपनी सफ़ाई


ये मासूम दिल था, समझ कुछ न पाया

इशारों में जो बात तुम ने बताई


नज़र को मेरी वैसी ताक़त भी देते

अगर तुम को करनी थी जल्वानुमाई


कहीं ज़िक्र आया न मेरा अभी तक

कहानी अधूरी है तुमने सुनाई


हज़ारों शिकायत तुम्हे ज़िन्दगी से

कभी ज़िन्दगी से की क्या आशनाई ?


सुना है कि शामिल वो हर शय में ’आनन’

वो ख़ुशबू है, ख़ूशबू  न देती दिखाई


-आनन्द.पाठक-

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