ग़ज़ल 201
122---122--122---122
मुहब्बत की उसने सज़ा जो सुनाई
न क़ैद-ए-कफ़स ही, न होगी रिहाई
भरोसा नहीं जब मेरी बात का तो
कहाँ तक तुम्हें दूँ मैं अपनी सफ़ाई
ये मासूम दिल था, समझ कुछ न पाया
इशारों में जो बात तुम ने बताई
नज़र को मेरी वैसी ताक़त भी देते
अगर तुम को करनी थी जल्वानुमाई
कहीं ज़िक्र आया न मेरा अभी तक
कहानी अधूरी है तुमने सुनाई
हज़ारों शिकायत तुम्हे ज़िन्दगी से
कभी ज़िन्दगी से की क्या आशनाई ?
सुना है कि शामिल वो हर शय में ’आनन’
वो ख़ुशबू है, ख़ूशबू न देती दिखाई
-आनन्द.पाठक-
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