ग़ज़ल 222
1222---1222----1222---1222
करें जब गोपियों की चूड़ियाँ झंकार होली में
मज़ा तब और आता है यहाँ लठमार होली में
अबीरों के उड़ें बादल कहीं है फ़ाग की मस्ती
कहीं गोरी रचाती सोलहो शृंगार होली में ।
इधर कान्हा की टोली है उधर ’राधा’ अकेली हैं
चलें दोनो तरफ़ से रंग की बौछार होली में ।
कहीं है थाप चंगों पर, कहीं पायल की छमछम है
कही पर कर रहा कोई सतत मनुहार होली में
किसी के रंग में रँग जा, न आता रोज़ यह मौसम
जो डूबा फिर न उबरा हो, वही हुशियार होली में
ये होली हो ’बिरज’ की या ’अवध’ की या ’बनारस’ की
करें रंगों से हम स्वागत , करें सत्कार होली में ।
गुलालों में घुली हैं स्नेह की ख़ुशबू मुहब्बत की
भुला कर सब गिले शिकवे गले लग यार होली में ।
न खाली हाथ लौटा है यहाँ से आजतक कोई
चले आना कि ’आनन’ का खुला है द्वार होली में ।
-आनन्द.पाठक-
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