ग़ज़ल 239 [04 E]
2122---1212--112/22
इश्क़ रुस्वा नहीं हुआ होता
नाम उ्नका न जो लिया होता
ग़ौर से देखते जो तुम मुझको
दिल में इक आइना दिखा होता
सोचता हूँ मैं इक ज़माने से
तुम न होते अगर तो क्या होता
ज़िन्दगी में तमाम रंग भरे
रंग तेरा भी जो भरा होता
आदमी में न कुछ कमी हो तो
आदमी देवता बना होता
हिज्र होता है क्या समझ जाते
दिल कहीं आप का लगा होता
उम्र भर मुन्तज़िर रहा ’आनन’
वो जो दो पल को आ मिला होता
-आनन्द.पाठक-
हिज्र = जुदाई ,वियोग
मुन्तज़िर = इन्तज़ार में प्रतीक्षारत
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