ग़ज़ल 256 [21E]
221---2121--1221---212
सिर्फ़ आसमान में न उड़ा कीजिए, जनाब !
नज़रें ज़मीन पर भी रखा कीजिए जनाब‘
इतनी तिजोरियाँ न भरा कीजिए जनाब‘
कुछ कर्ज़ ’वोट’का तो अदा कीजिए जनाब‘
जो ज़ख़्म भर गया था समय के हिसाब से
उस ज़ख़्म को न फिर से हरा कीजिए जनाब‘
क्यों सब्ज़ बाग़ आप दिखाते हैं रोज़-रोज़
’रोटी’ की बात भी तो ज़रा कीजिए जनाब
आवाज़ दे रहा हूँ खड़ा हाशिए से, मैं
आवाज़-ए-इन्क़लाब सुना कीजिए जनाब
"दुनिया में कोई और बड़ा है न आप से"
इन बदगुमानियों से बचा कीजिए जनाब
’आनन’ की बात आप को शायद बुरी लगे
अपनी ही बात से न फिरा कीजिए जनाब‘
-आनन्द.पाठक-
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