बुधवार, 14 सितंबर 2022

ग़ज़ल 255

 ग़ज़ल 255 [20E]

221---2121--1221--212


उनसे हुआ है आज तलक सामना नहीं

कोई ख़बर नहीं है कोई राबिता नहीं


दिल की ज़ुबान दिल ही समझता है ख़ूबतर

तुमने सुना वही कि जो मैने कहा नहीं


दावा तमाम कर रहे हो इश्क़ का मगर

लेकिन तुम्हारे इश्क़ में हर्फ़-ए-वफ़ा नहीं


आती नहीं नज़र मुझे ऐसी तो कोई  शै

जिसमें तुम्हारे हुस्न का जादू दिखा नहीं‘


वो हमनवा है, यार है, सुनता हूँ आजकल‘

वो मुझसे बेनियाज़ है लेकिन ख़फ़ा नहीं‘


वह राह कौन सी है जो आसान हो यहाँ

इस दिल ने राह-ए-इश्क़ में क्या क्या सहा नहीं‘


लोगो की बात को न सुना कीजिए , हुज़ूर 

कहना है उनका काम, मै दिल का बुरा नहीं 


जो भी सुना है तुमने किसी और से सुना

’आनन’ खुली किताब है तुमने पढ़ा नहीं‘


-आनन्द.फाठक-


शब्दार्थ 

राबिता =राब्ता = सम्पर्क

शै         = चीज़

हमनवा‘ = समान राय वाला

बेनियाज़ = बेपरवा 


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