ग़ज़ल 255 [20E]
221---2121--1221--212
उनसे हुआ है आज तलक सामना नहीं
कोई ख़बर नहीं है कोई राबिता नहीं
दिल की ज़ुबान दिल ही समझता है ख़ूबतर
तुमने सुना वही कि जो मैने कहा नहीं
दावा तमाम कर रहे हो इश्क़ का मगर
लेकिन तुम्हारे इश्क़ में हर्फ़-ए-वफ़ा नहीं
आती नहीं नज़र मुझे ऐसी तो कोई शै
जिसमें तुम्हारे हुस्न का जादू दिखा नहीं‘
वो हमनवा है, यार है, सुनता हूँ आजकल‘
वो मुझसे बेनियाज़ है लेकिन ख़फ़ा नहीं‘
वह राह कौन सी है जो आसान हो यहाँ
इस दिल ने राह-ए-इश्क़ में क्या क्या सहा नहीं‘
लोगो की बात को न सुना कीजिए , हुज़ूर
कहना है उनका काम, मै दिल का बुरा नहीं
जो भी सुना है तुमने किसी और से सुना
’आनन’ खुली किताब है तुमने पढ़ा नहीं‘
-आनन्द.फाठक-
शब्दार्थ
राबिता =राब्ता = सम्पर्क
शै ‘ = चीज़
हमनवा‘ = समान राय वाला
बेनियाज़ = बेपरवा
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