ग़ज़ल 259 [24 E]
2122---2122---2122
ज़ाहिदों की बात में क्यों आ रहा है ?
गर तू सादिक़ है तो क्यों घबरा रहा है?
क्यो है नफ़रत? आप समझें, आप जाने
प्यार क्या है? दिल मुझे समझा रहा है
साज़िशें करने लगी है अब हवाएँ-
कौन है जो नफ़रतें भड़का रहा है
आप की तारीफ़ ख़ुद ही आप ,साहिब !
तरबियत अख़लाक़ ही बतला रहा है
ख़ाक तेरी ख़ाक बन उड़ जाएगी जब
किस लिबास-ए-जिस्म पे बल खा रहा है
ज़िंदगी तो दी ख़ुदा ने सादगी की
तू हवस का जाल ख़ुद फ़ैला रहा है
रोशनी दिल में नहीं उतरी जब ’आनन’
तू किधर गुमराह हो कर जा रहा है ।
-आनन्द पाठक-
शब्दार्थ
ज़ाहिद = धर्मोपदेशक
सादिक़ = सच्च न्यायनिष्ठ
तर्बियत- अख़्लाक़ = संस्कार शिष्ट आचार
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