ग़ज़ल 263 [28E]
2122--1212--112/22
बात दिल की सुना करे कोई
ख़ुद से ख़ुद ज्यों मिला करे कोई
राह सच की मुझे दिखाता है
मेरे दिल में रहा करे कोई
कौन है वो मैं जानता भी नहीं
मुझको मुझसे जुदा करे कोई
राह-ए-उल्फ़त तवील है इतना
कौन कितना चला करे कोई
दर्द-ए-दिल का न हो शिफ़ाख़ाना
दर्द की क्या दवा करे कोई
जान कर भी हक़ीक़त-ए-दुनिया
मान ले सच तो क्या करे कोई
चन्द रोज़ां की ज़िन्दगी ’आनन’
क्यों न हँस कर जिया करे कोई
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
शिफ़ाख़ाना = अस्पताल. चिकित्सालय
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