ग़ज़ल 265(30E)
2122---2122--212
उनकी इशरत शादमानी और है
मेरे ज़ख़्मों की निशानी और है
उनकी ग़ज़लें और ही कुछ कह रहीं
आइने की तर्ज़ुमानी और है
जो पढ़ा इतिहास क्या है सच वही
वक़्त की अपनी कहानी और है
रोटियों की बात पर ख़ामोश हैं
झूठ की जादूबयानी और है
बात वैसे आप की तो ठीक है
दिल की लेकिन हक़-बयानी और है
जर्द पत्ते शाख़ से टूटे हुए
दर बदर की ज़िंदगानी और है
नींद क्यों तुमको अभी आने लगी
दास्तां सुननी सुनानी और है
आप ’आनन’ से कभी मिलिए ज़रा
शौक़ मेरा, मेज़बानी और है।
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
हक़बयानी - सच्ची बात
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