सोमवार, 21 अगस्त 2023

गीत 77

 एक गीत 77


जगह जगह है मारा-मारी, अब चुनाव की है तैयारी ।


चूहे-बिल्ली एक मंच पर. 

साँप-छछूंदर इक कोटर में

जब तक रहे चुनावी मौसम,

 भगवन दिखें उन्हे ’वोटर’ मे


नकली आँसू  ढुलका कर बस, जता रहे हैं दुनियादारी

जगह जगह है मारा मारी---


मुफ़्त का राशन, मुफ़्त की रेवड़ी -

मुफ़्त में बिजली मुफ़्त में पानी 

"’कर्ज़ तुम्हारा हम भर देंगे-"

झूठों की यह अमरित बानी


बात निभाने की पूछो तो कहते है-- "अब है लाचारी"

जगह जगह है मारा-मारी, ---


नोट-’वोट’ की राजनीति है

आदर्शों की बात कहाँ है ?

धुँआ वही से उठता दिखता

"रथ" का पहिया रुका जहाँ है

ऊँची ऊँची बाते लेकिन, उलफ़त पर है नफ़रत भारी

जगह जगह है मारा-मारी, ----


नया सवेरा लाने निकले

गठबंधन कर जुगनू सारे

अपने अपने मठाधीश की 

         लगा रहे है सब जयकारे

इक अनार के सौ बीमार हैं,गठबंधन की है दुश्वारी ।

        राह रोकने को सूरज की

         थमा चौकडी करते तारे

         झूठे नारे वादे लेकर

        साथ हो लिए है अँधियारे

वही ढाक के तीन  पात है, जनता बनी रही दुखियारी

जगह जगह है मारा-मारी, ---

-आनन्द पाठक---


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