ग़ज़ल 309
1212---1122--1212--22
अवाम जो भी सुनाए उसे सुना करिए
हवा का रुख भी ज़रा देखते रहा करिए
हुजूम आ गया सड़कों पे तख़्तियाँ लेकर
कभी तो हर्फ़-ए-इबारत जरा पढ़ा करिए
हर एक बात मेरी फूँक कर उड़ा देना
हुजूर दर्द सलीक़े से तो सुना करिए
ज़ुबान आप की है आप को मुबारक हो
जलील-ओ-ख्वार तो कम से न कम किया करिए
तमाशबीन ही बन कर न देखिए मंज़र
जनाब वक़्त ज़रूरत पे तो उठा करिए
चला किए है अभी तक किसी के पैरों से
उतर के पाँव पे अपने, कभी चला करिए
सही है बात बुरा मानना नहीं ’आनन’
बँधी हो आँख पे पट्टी, किसी का क्या करिए
-आनन्द.पाठक-
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