सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

ग़ज़ल 325

  325[01F]


212---212---212---212


आजकल आप जाने न रहते किधर

आप की अब तो मिलती नही कुछ ख़बर


इश्क नायाब है सब को हासिल नहीं

कौन कहता मुहब्बत है इक दर्द-ए-सर


ख़्वाब देखे थे या जो कि सोचे थे हम

अब तो दिखती नहीं वैसी कोई  सहर


काम ऐसा न कर ज़िंदगी  में कभी

जो चुरानी पड़े खुद को ख़ुद से नज़र


छोड़ कर जो गया हम सभी को कभी

कौन आया है प्यारे यहाँ लौट कर


वक़्त रुकता नहीं है किसी के लिए

तय अकेले ही करना पड़ेगा सफ़र


दिल जो कहता है तुझसे उसी राह चल

क्यों भटकता है ;आनन’ इधर से उधर


-आनन्द.पाठक-


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