सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

ग़ज़ल 327

  ग़ज़ल 327[03F]


212---212---212---212


जिंदगी में रही इक कमी उम्र भर

इन लबों पर रही तिशनगी उम्र भर


तुम जो आते तो दिल होता रोशन मेरा

तुम न आए रही तीरगी  उम्र भर 


जानता हूँ मगर कह मैं सकता नहीं

ज़िंदगी क्यों मुझे तुम छ्ली उम्र भर


ये नज़ाकत, लताफ़त ये लुत्फ़-ओ-अदा

किसकी क़ायम यहाँ कब रही उम्र भर


आप की बात पर था भरोसा मुझे

राह देखा किए आप की उम्र भर


हो न लुत्फ़-ओ-इनायत भले आप की

दिल करेगा मगर बंदगी उम्र भर


सबको अपना समझते हो ’आनन’ यहाँ

कौन होता किसी का कहाँ उम्र भर


-आनन्द.पाठक-


 

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