सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

ग़ज़ल 328

  ग़ज़ल 328 [04] 


ग़ज़ल 328[04फ़]

122--122--122--122


मुझे क्या ख़बर किसने क्या क्या कहा है

अभी मुझ पे तारी तुम्हारा  नशा  है ।


तुम्हें शौक़ है आज़माने का मुझको

हमेशा हूँ हाज़िर ,मना कब किया है


अभी शाम में ख़त मिला जब तुम्हारा

वही मैं पढ़ा जो न तुमने लिखा है


हज़ारों मनाज़िर मेरे सामने थे

तुम्हारे सिवा कब मुझे कुछ दिखा है


बदन ख़ाक की मिल गई ख़ाक में तो

ये हंगामा इतना क्यों बरपा हुआ  है


नई रोशनी घर में आए तो कैसे 

न खिड़की खुली है, न दर ही खुला है


समझ जाएगी एक दिन वह भी ’आनन’

अभी वह मुहब्बत से नाआशना है 


-आनन्द.पाठक- 

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