ग़ज़ल 335[10]
2122---1212---22
झूठ की हद से जब गुज़रता है
बात सच की कहाँ वो करता है
जब दलाइल न काम आती है
गालियों पर वो फिर उतरता है
हर तरफ है धुआँ धुआँ फ़ैला
खिड़कियां खोलने से डरता है
वह उजालों के राज़ क्या जाने
जुल्मतों में सफर जो करता है
आसमाँ पर उड़ा करे हमदम
वह ज़मीं पर कहाँ ठहरता है ?
निकहत-ए-गुल से कब शनासाई
मौसिम-ए-गुल उसे अखरता है
कैसे ’आनन’ करें यकीं उसपर
जो ज़ुबाँ दे के भी मुकरता है
-आनन्द.पाठक-
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