ग़ज़ल 336/11
212---212---212---212
इश्क़ क्या है? न मुझको बताया करो
जो पढ़ी हो, अमल में भी लाया करो ।
गर ज़ुबाँ से हो कहने में दुशवारियाँ
तो निगाहों से ही कह के जाया करो ।
जो रवायत ज़माने के नाक़िस हुए
छोड़ दो, कुछ नया आज़माया करो ।
दोस्ती भी इबादत से तो कम नही
बेगरज़ साथ तुम भी निभाया करो ।
रहबरी है तुम्हारी कि साज़िश है कुछ
जानते हैं सभी , मत छुपाया करो ।
जो अँधेरों में है उनके दिल में कभी
इल्म की रोशनी तो जगाया करो ।
नाम ’आनन’ का तुमने सुना ही सुना
जानना हो तो घर पे भी आया करो ।
-आनन्द पाठक--
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