ग़ज़ल 337/12
221---212---212---212
खुशियों का ज़िंदगी में अभी सिलसिला नहीं
मैने भी ज़िंदगी से अभी कुछ कहा नहीं ।
हालात-ए-ज़िंदगी से कोई ग़मज़दा न हो
ऐसा तो कोई शख़्स अभी तक मिला नहीं ।
नफ़रत की आँधियॊं से उड़ा आशियाँ मेरा
ज़ौर-ओ-सितम से एक भी तिनका बचा नहीं
दीवार थी गुनाह की दोनों के बीच में ,
वरना था दर्मियान कोई फ़ासला नहीं ।
वैसे कहानी आप की तो बारहा सुनी
फिर भी ज़दीद सी ही लगी, दिल भरा नहीं ।
नदिया में प्यास की न तड़प ही रही अगर
सागर से फिर मिलन का असर खुशनुमा नहीं
’आनन’ ख़याल-ओ-ख़्वाब में इतना न डूब जा
दुनिया की साज़िशों का तुम्हे हो पता नही ।
-आनन्द पाठक-
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