मंगलवार, 27 फ़रवरी 2024

ग़ज़ल 338

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आप से अर्ज-ए-हाल है, साहिब
जिंदगी पाएमाल  है साहिब

रोज जीना है रोज मरना है
यह भी खुद मे कमाल है, साहिब

अब फरिश्ते कहाँ उतरते हैं
आप का क्या खयाल है साहिब ?

रोशनी देगा या जला देगा-
हाथ उसके मशाल है, साहिब

सिर्फ टी0वी0 पे दिन दिखे अच्छे
मुझको इसका मलाल है साहिब

जिंदगी शौक़ है कि मजबूरी ?
यह भी कैसा सवाल है, साहिब

लोग 'आनन'  को हैं बुरा कहते
चन्द लोगों की चाल है साहिब

-आनन्द पाठक-

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