ग़ज़ल 339/14
212---212---212---212--
तुम ने जैसा कहा मैने वैसा किया
फ़िर बताओ कि मैने बुरा क्या किया ?
हाथ की बस लकीरें रहे देखते
बाजुओं पर न तुमने भरोसा किया ।
ध्यान में वह नहीं था, कोई और था
बस दिखावे का ही तुमने सज्दा किया ।
इश्क़ क्या चीज़ है, तुमको क्या है पता
इश्क़ के नाम पर बस तमाशा किया ।
रह-ए-हक़ में क़दम दो क़दम क्या चले
चन्द लोगों ने मुझ से किनारा किया ।
क्यों जुबाँ लड़खड़ाने लगी आप की
आप ने कौन सा सच से वादा किया ।
बात ’आनन’ की चुभने लगी आप को
सच की जानिब जब उसने इशारा किया ।
-आनन्द.पाठक--
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