ग़ज़ल 343[18]
221---2122 // 221---2122
आकर जो पूछ लेते, क्या हाल है हमारा ?
ताउम्र दिल ये करता ,सद शुक्रिया तुम्हारा ।
किस शोख़ से अदा से, नाज़ुक़ सी उँगलियों से
तुमने छुआ था मुझको, दहका बदन था सारा ।
होती अगर न तेरी रहम-ओ-करम, इनायत
तूफ़ाँ में कश्तियों को मिलता कहाँ किनारा !
दैर-ओ-हरम की राहें , मैं बीच में खड़ा हूँ
साक़ी ने मैकदे से हँस कर मुझे पुकारा ।
दिलकश भरा नज़ारा, मंज़र भी ख़ुशनुमा हो
जिसमें न अक्स तेरा ,किस काम का नज़ारा ।
जब साँस डूबती थी, देखी झलक तुम्हारी
गोया की डूबते को तिनके का हो सहारा ।
मैं ख़ुद में गुम हुआ हूँ , ख़ुद को ही ढूंढता हूँ
मुद्दत हुई अब आनन’, ख़ुद को नहीं निहारा !
-आनन्द.पाठक---
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