शुक्रवार, 1 मार्च 2024

ग़ज़ल 343

  



ग़ज़ल 343[18]


221---2122  // 221---2122


आकर जो पूछ लेते, क्या हाल है हमारा ?

ताउम्र दिल ये करता ,सद शुक्रिया तुम्हारा ।


किस शोख़ से अदा से, नाज़ुक़ सी उँगलियों से

तुमने छुआ था मुझको, दहका बदन था सारा ।


होती अगर न तेरी रहम-ओ-करम, इनायत

तूफ़ाँ में कश्तियों को मिलता कहाँ किनारा !


दैर-ओ-हरम की राहें , मैं बीच में खड़ा हूँ

साक़ी ने मैकदे से हँस कर मुझे पुकारा ।


दिलकश भरा नज़ारा, मंज़र भी ख़ुशनुमा हो

जिसमें न अक्स तेरा ,किस काम का नज़ारा ।


जब साँस डूबती थी, देखी झलक तुम्हारी

गोया की डूबते को तिनके का हो सहारा ।


मैं ख़ुद में गुम हुआ हूँ , ख़ुद को ही ढूंढता हूँ

मुद्दत हुई अब आनन’, ख़ुद को नहीं निहारा !


-आनन्द.पाठक---


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