ग़ज़ल 352
1212---1122---1212---22
नहीं वो बात रही, क्या करूँ गिला कोई,
तेरे ख़याल में अब और आ गया कोई ।
मिले जो आज तलक सबकी थी गरज अपनी
गले लगा ले जो मुझको,नहीं मिला कोई ।
दयार आप का हो या दयार-ए-यार कहीं ,
निगाह-ए-पाक ने कब फर्क है किया कोई !
करम हो आप का जिस पर वो ख़ुश रहा, वरना
अजाब-ए-सख़्त के कब तक यहाँ बचा कोई ।
ज़ुबान बेच दी जिसने खनकते सिक्कों पर
गिरा जो ख़ुद की नज़र से न उठ सका कोई ।
कहाँ कहाँ से न गुज़रे तलाश-ए-हक़ में, हम
सही मुक़ाम न अबतक कहीं मिला कोई ।
सफ़र हयात का अब ख़त्म हो रहा ’आनन’
क्षितिज के पार से मुझको बुला रहा कोई ।
-आनन्द.पाठक-
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