गुरुवार, 11 जुलाई 2024

ग़ज़ल 371

 ग़ज़ल 371 [42F]

21---121---121---122


कितने रंग बदलता है, वह

ख़ुद ही ख़ुद को छलता है, वह ।


सीधी सादी राहों पर भी

टेढ़े-मेढ़े  चलता है , वह ।


जितना जड़ से कटता जाता

उतना और उछलता है, वह ।


बन्द किया है सब दरवाजे

अपने आप बहलता है, वह ।


करते हैं सब कानाफ़ूसी -

जिस भी राह निकलता है वह ।


औरों के पांवों से चलता ,

अपने पाँव न चलता है, वह।


’आनन’ की तो बात अलग है,

दीप सरीखा जलता है, वह ।


-आनन्द.पाठक-

सं 30-06-24


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