ग़ज़ल 395 [58फ़]
1212---1122---1212---112/22
उसे पता ही नहीं क्या वो बोल जाता है
न सर, न पैर हो, बातें वही सुनाता है ।
वो आइना पे ही इलजाम मढ़ के चल देता
अगर जो आइना कोई कहीं दिखाता है ।
किसी के पीठ पे हो कर सवार पार हुआ
उसी को बाद में फिर शौक़ से डुबाता है ।
वो चन्द रोज़ हवा में उड़ा करेगा अभी
नई नई है मिली जीत यह दिखाता है ।
उसे बहार में भी आ रही नज़र है खिज़ाँ
वो जानबूझ के भी सच नही बताता है ।
ज़मीन पर है नहीं पाँव आजकल उसके
वो आसमाँ से हक़ीक़त न देख पाता है ।
हवा लगी है उसे बदगुमान की ’आनन’
किसी को अपने मुक़ाबिल नही लगाता है ।
-आनन्द.पाठक-
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