शनिवार, 20 जुलाई 2024

ग़ज़ल 400

  ग़ज़ल 400 [42-अ] 

21---121---121--122  // 21---121--121--122


खोटे सिक्के हाथों में ले, मोल लगाने लोग खड़े है 

घड़ियाली आँसू से पूरित, दर्द जताने लोग खड़े हैं ।


आज धुँआ फिर से उठ्ठेगा, झुग्गी झोपड़ पट्टी से ही

कल जैसा फिर दुहराने को, आग लगाने लोग खड़े हैं ।


बेंच दिए ’रामायण-गीता’ आदर्शों की बात भुला कर

वाचन करने को तत्पर हैं, अर्थ बताने लोग खड़े हैं ।


दीन-धरम है बाक़ी अब भी, कुछ लोगों के दिल के अन्दर

आग लगाने वालों सुन लो, आग बुझाने लोग खड़े हैं ।


दुनिया भर की बात करेंगे, चाँद सितारे मुठ्ठी में है

करना धरना एक नही है, गाल बजाने लोग खड़े हैं ।


शर्म-ओ-हया की बात कहाँ अब, उरियानी का फैशन आया

वाजिब है कुछ की नजरों मे, आज बताने लोग खड़े हैं


’आनन’ तुम भी कैसे कैसे, लोगों की बातों में आए

झूठे वादों से जन्नत की, सैर कराने लोग खड़े हैं ।


-आनन्द पाठक-



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