गुरुवार, 20 मार्च 2025

अनुभूतियाँ 140

 अनुभूतियाँ 140/27


 557
ना ही कोई अपना होता
ना ही कोई यहाँ पराया
यह तो है व्यवहार आप का
किसको कितना कैसा भाया ।

558
फिर सावन के दिन आयो है
उमड़ घुमड़ बदरा गरजै है ।
तड़क भड़क कर चमकै बिजुरी 
गोरी का  जियरा धड़कै है ।

559
जिसको देखो वही दुखी है
पैर रखे चादर से आगे ।
दुनिया को मुठ्ठी में करने,
बस माया के पीछे भागे ।

560
 तुम्हे सहारा  क्या देंगे वह
बेसाखी पर टिके हुए जो
क्यों उनसे हो आस लगाए 
सुविधाओं पर बिके हुए जो

-आनन्द पाठक-

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