शुक्रवार, 21 मार्च 2025

अनुभूतियाँ 157

  अनुभूति 157/44




625
मुझे मतलबी समझा तुमने
सोच तुम्हारी, मैं क्या बोलूँ
खोल चुका दिल पूरा अपना
और बताओ कितना खोलूँ


626
कमी सभी में कुछ ना कुछ तो
कौन यहाँ सम्पूर्ण स्वयं में ।
सत्य मान कर जीते रहना
आजीवन बस एक भरम में ।


627
जो होना है सो होगा ही
व्यर्थ बहस है व्यर्थ सोचना
पाप-पुण्य की बात अलग है
कर्मों का फ़ल यहीं भोगना  ।


628
ग़लत सदा ही समझा तुमने 
देव नहीं में , नहीं फ़रिश्ता
जैसी तुम हो, वैसा मैं भी
दिल से दिल का केवल रिश्ता


-आनन्द.पाठक--
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