शुक्रवार, 21 मार्च 2025

अनुभूतियाँ 158

   अनुभूति 158/45


629

भला बुरा या जैसा भी हूँ

जो बाहर से, सो अन्दर से

शायद और निखर जाऊँ मै

पारस परस तुम्हारे कर से ।


630

विरह वेदना अगर न होती

तड़प नहीं जो होती इसमे

पता कहाँ फिर चलता कैसे

प्रेम भावना कितना किसमे।


631

हम दोनों की राह अलग अब

लेकिन मंज़िल एक हमारी

प्रेम अगन ना बुझने पाए

चाहे जो हो विपदा भारी ।


632

दोषारोपण क्या करना अब

किसने जोड़ा, किसने छोड़ा

टूट गई जब प्रेम की डोरी

व्यर्थ बहस क्या किसने तोड़ा


-आनन्द पाठक-

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