अनुभूतियाँ 180/67
717
मुझे ग़लत ही समझा सबने
कभी किसी ने दिया साथ क्या
तुमने भी गर समझा ऐसा
तो इसमे फिर नई बात क्या ।
718
साथ निभाने वाली बातें
मैं कब भूला, तुम ही भूली
याद दिला कर भी क्या होगा
तुम्हें नही जब करना पूरी ।
719
कौन तुम्हारे साथ खड़ा था
किसने बना रखी थी दूरी
उन्हे परखना, उन्हें समझना
तुमने समझा नही ज़रूरी
720
आँखों के सपनों की ख़ातिर
गिरते, उठते, थकते, चलते
और ज़िंदगी कट जाती है
सुख दुख के साए में पलते
-आनन्द.पाठक-
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