अनुभूतियाँ 179/66
713
सत्य कहाँ तक झुठलाओगे
छुपता नहीं, न दब पाएगा ।
ख़ुद को धोखा कब तक दोगे
झूठ कहाँ तक चल पाएगा ।
714
सुख दुख चलते साथ निरन्तर
जबतक जीवन एक सफ़र है
जितना उलझन मन के बाहर
अधिक कहीं मन के अंदर है।
715
वक़्त गुज़रने को गुज़रेगा
भला बुरा या चाहे जैसा
ज़ोर नहीं जो अगर तुम्हारा
ढलना होगा तुमको वैसा
716
क्या करना है तुमको सुन कर
कैसी गुज़र रही है मुझ पर
शायद तुमको खुशी न होगी
ज़िंदा रहता हूँ मर मर कर
-आनन्द.पाठक-
इसी अनुभूतियों कॊ आ0 विनोद कुमार उपाध्याय [ लखनऊ] के स्वर में यहाँ सुनें और आनन्द उठाएँ
https://www.facebook.com/share/v/1CAa5Jw1Ra/
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें