मंगलवार, 22 अप्रैल 2025

दोहा 09

  दोहे 09


मन में चाहे कुटिलता, दिल में चाहे घात ।
हाथ जोड़ मिलते रहो, जनता से दिन-रात ॥

रस्सी तनी चुनाव की,  नेता जी चढ़ जाय ।
देख संतुलन पाँव के, नट-नटिनी शरमाय ॥

नेता जी करने लगे , अब हमाम की बात ।
बाहर चाहे जो दिखें,  भीतर सब को ज्ञात ॥

उनकी  खिड़की बंद है,  नई हवा ना आय ।
सड़ी गली सी सोच से. धुँआ धुँआ भर जाय ॥

ढकी रहे उतनी भली, हर चुनाव अभियान ।
बीच सड़क मत धोइए,  चड्डी औ’ बनियान ॥

जनता ही समझी नहीं ,मेरो काम महान ।
वरना हम कब  हारते, इस चुनाव दौरान॥

नेता जी जो कर रहें-" 'जनता' जिंदाबाद ।
ढूँढे से भी ना मिलें, फिर चुनाव के बाद" ॥

-आनन्द पाठक-

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