दोहे 09
हाथ जोड़ मिलते रहो, जनता से दिन-रात ॥
रस्सी तनी चुनाव की, नेता जी चढ़ जाय ।
देख संतुलन पाँव के, नट-नटिनी शरमाय ॥
नेता जी करने लगे , अब हमाम की बात ।
बाहर चाहे जो दिखें, भीतर सब को ज्ञात ॥
उनकी खिड़की बंद है, नई हवा ना आय ।
सड़ी गली सी सोच से. धुँआ धुँआ भर जाय ॥
ढकी रहे उतनी भली, हर चुनाव अभियान ।
बीच सड़क मत धोइए, चड्डी औ’ बनियान ॥
जनता ही समझी नहीं ,मेरो काम महान ।
वरना हम कब हारते, इस चुनाव दौरान॥
नेता जी जो कर रहें-" 'जनता' जिंदाबाद ।
ढूँढे से भी ना मिलें, फिर चुनाव के बाद" ॥
-आनन्द पाठक-
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