गुरुवार, 25 मार्च 2021

माहिया 03

 

क़िस्त 03

:01:

ख़ुद से न गिला होता

यूँ न भटकते हम

तू काश ! मिला होता ।

 

:02

ऐसे न बनो बरहम 1

चुप हो पहलू में !

 कैसी ये सज़ा जानम ?

 

:03:

बरगद बूढ़ा ही सही

घर के आँगन में

इक छाँव बनी तो रही ।

 

;04:

मिलने मे मुहूरत क्या !

जब चाहे आना

साइत की ज़रूरत क्या !

 

:05:

रिश्तों को निभा देना,

बर्फ़ जमी हो तो

कुछ धूप दिखा देना ।

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