गुरुवार, 25 मार्च 2021

माहिया 04

 

 

:क़िस्त 04

 

:01:

मत काटो शाख़-ए-शजर,

लौटेंगे थक कर

इक शाम परिन्दे घर ।

 

:02:

मैं मस्त कलन्दर हूँ,

बाहर से क़तरा

भीतर से समन्दर हूँ ।

 

:03:

ये किसकी राहगुज़र ?

झुक जाता है सर

सजदे में यहाँ आकर ।

 

:04:

सौ ख़्वाब ख़यालों में,

जब तक है पर्दा,

उलझा हूँ सवालों  में ।

 

:05:

दुनिया ने ठुकराया,

और कहाँ जाता,

मयखाने चला आया।

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