गुरुवार, 25 मार्च 2021

माहिया 07

 

क़िस्त 07

 

01

ये हुस्न तो फ़ानी 1 है,

फिर कैसा पर्दा?

दो दिन की कहानी है

 

02

कुछ ग़म की रात रही,

साथ में रुस्वाई,

हासिल सौगात रही

 

03

इतना तो बता देते,

क्या थी ख़ता मेरी ?

फिर जो भी सज़ा देते

 

04

क्यों दुनिया के डर से?

लौट गए थे तुम,

आकर भी मेरे दर से

 

05

जब से है तुम्हें देखा,

देख रहा हूँ मैं,

इन हाथों की रेखा

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