क़िस्त 07
01
ये हुस्न तो फ़ानी 1 है,
फिर कैसा पर्दा?
दो दिन की कहानी है।
02
कुछ ग़म की रात रही,
साथ में रुस्वाई,
हासिल सौगात रही।
03
इतना तो बता
देते,
क्या थी ख़ता
मेरी ?
फिर जो भी सज़ा
देते।
04
क्यों दुनिया के
डर से?
लौट गए थे तुम,
आकर भी मेरे दर
से।
05
जब से है
तुम्हें देखा,
देख रहा हूँ मैं,
इन हाथों की
रेखा।
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