क़िस्त 08
01
कुछ याद तुम्हारी है,
उस से ही दुनिया,
आबाद हमारी है।
02
जबतक कि सँभल पाता,
राह-ए-उल्फ़त में,
ठोकर हूँ नई खाता।
03
लहराओ न यूँ
आँचल,
दिल का भरोसा
क्या !
हो जाए न फिर
पागल।
04
जीने का जरिया
था,
सूख गया वो भी,
जो प्यार का
दरिया था।
05
गिरते न बिखरते
हम,
काश! सफ़र में
तुम,
चलते जो साथ सनम।
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