क़िस्त 10
01
रंगोली आँगन की
देख रही राहें,
छुप छुप कर साजन के ।
02
धोखा ही सही माना,
अच्छा लगता है,
तुम से धोखा खाना।
03
औरों से
रज़ामन्दी,
महफ़िल में तेरी,
मेरी ही
ज़ुबाँबन्दी।
04
माटी से बनाते
हो,
क्या मिलता है
जब
माटी में मिलाते
हो ?
05
सच, वो न
नज़र आता,
कोई है दिल में,
जो राह दिखा
जाता।
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