212-- -212-- -212
फ़ाइलुन---फ़ाइलुन--फ़ाइलुन
बह्र-ए-मुतदारिक मुसद्दस सालिम
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झूठ का है जो फैला धुआँ
साँस लेना भी मुश्किल यहाँ
सच की उड़ती रहीं धज्जियाँ
झूठ का दबदबा था जहाँ
चढ़ के औरों के कंधों पे वो
आज छूने चला आसमाँ
तू इधर की उधर की न सुन
तू अकेला ही है कारवाँ
जिन्दगी आजतक ले रही
हर क़दम पर कड़ा इम्तिहाँ
बेज़ुबाँ की ज़ुबाँ है ग़ज़ल
हर सुखन है मेरी दास्ताँ
एक ’आनन’ ही तनहा नहीं
जिसके दिल में है सोज़-ए-निहाँ
-आनन्द.पाठक-
[सं 18-05-19]
झूठ का है जो फैला धुआँ
साँस लेना भी मुश्किल यहाँ
सच की उड़ती रहीं धज्जियाँ
झूठ का दबदबा था जहाँ
चढ़ के औरों के कंधों पे वो
आज छूने चला आसमाँ
तू इधर की उधर की न सुन
तू अकेला ही है कारवाँ
जिन्दगी आजतक ले रही
हर क़दम पर कड़ा इम्तिहाँ
बेज़ुबाँ की ज़ुबाँ है ग़ज़ल
हर सुखन है मेरी दास्ताँ
एक ’आनन’ ही तनहा नहीं
जिसके दिल में है सोज़-ए-निहाँ
-आनन्द.पाठक-
[सं 18-05-19]
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