गुरुवार, 25 मार्च 2021

माहिया 12

 

क़िस्त 12

1

दीदार न हो जबतक,

चढ़ता ही जाए

उतरे न नशा तबतक।

 

2

ये इश्क़ सदाकत है,

खेल नहीं, साहिब !

इक तर्ज-ए-इबादत है।1

 

3

बस एक झलक पाना,

मतलब है इसका

इक उम्र गुज़र जाना।

 

4

अपनी पहचान नहीं,

ढूँढ रहा बाहर

भीतर का ध्यान नहीं।

 

5

जबतक मैं हूँ ,तुम हो

कैसे कह दूँ मैं,

तुम मुझ में ही गुम हो।

 

1 पूजन-विधि

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