क़िस्त 12
1
दीदार न हो जबतक,
चढ़ता ही जाए
उतरे न नशा तबतक।
2
ये इश्क़ सदाकत है,
खेल नहीं, साहिब !
इक तर्ज-ए-इबादत है।1
3
बस एक झलक पाना,
मतलब है इसका
इक उम्र गुज़र
जाना।
4
अपनी पहचान नहीं,
ढूँढ रहा बाहर
भीतर का ध्यान
नहीं।
5
जबतक मैं हूँ ,तुम हो
कैसे कह दूँ मैं,
तुम मुझ में ही
गुम हो।
1 पूजन-विधि
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