क़िस्त 13
1
इक अक्स उतर आया,
दिल के शीशे में,
फिर कौन नज़र आया !
2
ता उम्र रहा चलता,
ख़्वाब मिलन का था,
आँखों में रहा पलता ।
3
तुम से न कभी
सुलझें,
अच्छी लगती हैं,
बिखरी बिखरी जुल्फ़ें।
4
गो दुनिया फ़ानी
है
चाहे जैसी हो,
लगती तो सुहानी
है।
5
सब मज़हब में
उलझे,
मज़हब के आलिम
इन्सां को नहीं
समझे।
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