क़िस्त 14
1
कहने को याराना।
वक़्त ज़रूरत वो,
हो जाता बेगाना।
2
दिल में जो लगी हो लौ,
आना चाहो तो
आने की राहें सौ।
3
रह-ए-इश्क़ में
हूँ गाफ़िल.
दुनिया कहती है,
मंज़िल यह
लाहासिल 1
4
इस दिल को
तसल्ली है
कायम है अब भी
तेरी जो तजल्ली
2 है
5
जुल्फ़ों को
सुलझा लो,
या तो इन्हें
बाँधो,
या मुझको उलझा
लो।
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